सुनता नहीं किसू ही की वो यार देखना
कीजो न उस से हाल-ए-दिल इज़हार देखना
गुस्ताख़ बे-तरह है तुझ आग़ोश से ये हाथ
हो जाएगा गले का तिरे हार देखना
तुझ दर पे मिस्ल-ए-नक़्श-ए-क़दम एक उम्र से
प्यारे फ़तादा है ये गुनहगार देखना
घर तेरे गए पे तुझ कूँ न पाया बिला रक़ीब
मुझ को हुआ ये गुल के एवज़ ख़ार देखना
शम्-ए-जमाल अपने पे चाहे जो इम्तिहाँ
परवाना-वार मुझ को भी यक-बार देखना
कोई तीरा-बख़्त मुझ सा भी होगा जहान में
तुझ ज़ुल्फ़ से मिला न मुझे तार देखना
इस राज़-ए-इश्क़ को कहीं रो रो के शम्अ साँ
इज़हार कीजियो न 'जहाँदार' देखना
ग़ज़ल
सुनता नहीं किसू ही की वो यार देखना
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार