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सुनता नहीं किसू ही की वो यार देखना | शाही शायरी
sunta nahin kisu hi ki wo yar dekhna

ग़ज़ल

सुनता नहीं किसू ही की वो यार देखना

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

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सुनता नहीं किसू ही की वो यार देखना
कीजो न उस से हाल-ए-दिल इज़हार देखना

गुस्ताख़ बे-तरह है तुझ आग़ोश से ये हाथ
हो जाएगा गले का तिरे हार देखना

तुझ दर पे मिस्ल-ए-नक़्श-ए-क़दम एक उम्र से
प्यारे फ़तादा है ये गुनहगार देखना

घर तेरे गए पे तुझ कूँ न पाया बिला रक़ीब
मुझ को हुआ ये गुल के एवज़ ख़ार देखना

शम्-ए-जमाल अपने पे चाहे जो इम्तिहाँ
परवाना-वार मुझ को भी यक-बार देखना

कोई तीरा-बख़्त मुझ सा भी होगा जहान में
तुझ ज़ुल्फ़ से मिला न मुझे तार देखना

इस राज़-ए-इश्क़ को कहीं रो रो के शम्अ साँ
इज़हार कीजियो न 'जहाँदार' देखना