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सुनोगे तुम भी मिरी दास्ताँ कभी न कभी | शाही शायरी
sunoge tum bhi meri dastan kabhi na kabhi

ग़ज़ल

सुनोगे तुम भी मिरी दास्ताँ कभी न कभी

अज़ीज़ बदायूनी

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सुनोगे तुम भी मिरी दास्ताँ कभी न कभी
असर दिखाएगा दर्द-ए-निहाँ कभी न कभी

कभी तो आतिश-ए-नमरूद सर्द भी होगी
क़रार पाएगा क़ल्ब-ए-तपाँ कभी न कभी

ये आज गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर बताती है
नज़र बचाएगा ख़ुद आसमाँ कभी न कभी

कभी तो गौहर-ए-नायाब हाथ आएगा
मिलेगा रूह-ए-ख़ुदी का निशाँ कभी न कभी

जमूद-सेहर-तमन्ना में रह नहीं सकता
फ़रोग़ पाएगा अज़्म-ए-जवाँ कभी न कभी

अज़ाँ बिलाल की गूँजी है रेगज़ारों में
सुनेगा दिल की सदा ये जहाँ कभी न कभी

'अज़ीज़' तेरी मोहब्बत भी रंग लाएगी
तमाम होगा ग़म-ए-बेकराँ कभी न कभी