सुनो तो ख़ूब है टुक कान धर मेरा सुख़न प्यारे
कि आशिक़ पर न होना इस क़दर भी दिल कठन प्यारे
किधर हो बे-ख़बर हो क्या मगर अहवाल सीं मेरे
उधर देखो ऐ ज़ालिम ला-उबाली मन-हरन प्यारे
न कर आज़ुर्दा-ख़ातिर बुलबुल-ए-बेताब कूँ हरगिज़
ग़नीमत बूझ दो दिन की बहार ऐ मन-हरन प्यारे
फँसा है मुझ सरी का सैद आ कर दाम में तेरे
किया तू ने मगर कुछ सेहर ऐ जादू नयन प्यारे
तग़ाफ़ुल मत करो ऐ नौ-बहार-ए-गुलशन-ए-ख़ूबी
तुम्हारे बिन निपट बे-आब है दिल का चमन प्यारे
मिरे दिल की कली मुरझा रही है सरसर-ए-ग़म सें
करो टुक मुस्कुरा कर बात ऐ शीरीं-दहन प्यारे
'सिराज' अब शोला-ए-उल्फ़त में जियूँ परवाना जलता है
न जानूँ तुझ सती इस कूँ लगी है क्या लगन प्यारे
ग़ज़ल
सुनो तो ख़ूब है टुक कान धर मेरा सुख़न प्यारे
सिराज औरंगाबादी