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सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो | शाही शायरी
suno to aariza-e-iKHtilaj rahne do

ग़ज़ल

सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो

राही फ़िदाई

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सुनो तो आरिज़ा-ए-इख़तिलाज रहने दो
सुकूँ के ठीक नहीं हैं मिज़ाज रहने दो

ब-हुक्म-ए-शाह तक़ारीब-ए-अम्न कल होंगे
शरर-गज़ीदा है माहौल आज रहने दो

तुम अपनी नब्ज़ की रफ़्तार पर नज़र रक्खो
ख़िलाफ़-ए-गर्दिश-ए-नौ-एहतिजाज रहने दो

किसी को साया किसी को गुल-ओ-समर देगा
हरा भरा है दरख़्त-ए-रिवाज रहने दो

ज़मीन-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर बाँझ है अभी 'राही'
हुसूल-ए-दाद वसूल-ए-ख़िराज रहने दो