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सुनो ख़ामोश ही हस्ती मिरी तुम से जुदा होगी | शाही शायरी
suno KHamosh hi hasti meri tum se juda hogi

ग़ज़ल

सुनो ख़ामोश ही हस्ती मिरी तुम से जुदा होगी

फ़ैसल फेहमी

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सुनो ख़ामोश ही हस्ती मिरी तुम से जुदा होगी
कि अब हर इक फ़रियाद-ए-इनायत बे-नवा होगी

किसी फ़रियाद-ए-उल्फ़त से भला उम्मीद क्या रखना
मोहब्बत बेवफ़ा थी बेवफ़ा है बेवफ़ा होगी

पुराने काग़ज़ों पे दर्ज मेरी शाइ'री शायद
किसी मजरूह दिल के ज़ख़्म की माइल रिदा होगी

करोगे ज़ुल्म कब तक मशवरा है बाज़ आ जाओ
बहुत पछताओगे तुम ज़ुल्म की गर इंतिहा होगी

तजस्सुस छोड़ दे तुम क़ैस-ओ-लैला सी मोहब्बत का
की दौर-ए-नौ की हर तमसील-ए-उलफ़त बेवफ़ा होगी