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सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है | शाही शायरी
suna hai usne KHizan ko bahaar karna hai

ग़ज़ल

सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है

इक़बाल कैफ़ी

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सुना है उस ने ख़िज़ाँ को बहार करना है
ये झूट तो है मगर ए'तिबार करना है

ये और बात मुलाक़ात हो न हो लेकिन
क़यामतों का हमें इंतिज़ार करना है

मोहब्बतों को भी उस ने ख़ता क़रार दिया
मगर ये जुर्म हमें बार बार करना है

हर एक बार ये सोचा कि अब की बार उस ने
न जाने कौन सा ढंग इख़्तियार करना है

तुम अपना चाँद ख़ुशी से तमाम शब देखो
हमारा काम सितारे शुमार करना है