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सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए | शाही शायरी
suna hai kuch to un ka par isko kya kahiye

ग़ज़ल

सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए

वाजिद अली शाह अख़्तर

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सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए
ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा कहिए

मिसी लगा के सियाही से क्यूँ डराते हो
अँधेरी रातों का हम से तो माजरा कहिए

हज़ार रातें भी गुज़रीं यही कहानी हो
तमाम कीजिए इस को न कुछ सिवा कहिए

हुआ है इश्क़ में ख़ासान-ए-हक़ का रंग सफ़ेद
ये क़त्ल-ए-आम नहीं शोख़ी-ए-हिना कहिए

तुराब-ए-पा-ए-हसीनान-ए-लखनऊ है ये
ये ख़ाकसार है 'अख़्तर' को नक़्श-ए-पा कहिए