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सुन कर कितनी आँखें निकलीं | शाही शायरी
sun kar kitni aankhen niklin

ग़ज़ल

सुन कर कितनी आँखें निकलीं

असलम राशिद

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सुन कर कितनी आँखें निकलीं
इक पत्थर में साँसें निकलीं

आँखों से इक दरिया निकला
दरिया से कुछ लाशें निकलीं

ग़म के भी कुछ फूल खिले हैं
ज़ख़्मों से भी शाख़ें निकलीं

आगे आगे नाख़ुन आए
पीछे पीछे बाँहें निकलीं

जिस को खोया था आँखों ने
उस को लेने यादें निकलीं

काँटों ने क्यूँ जश्न मनाया
फूलों से क्यूँ आहें निकलीं

उन गलियों में रह कर देखा
दिन से रौशन रातें निकलीं