सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा
प्यार नादान को मत दे कि ये मर जाएगा
रविश-ए-आम से होश्यार कि पछताएगा
वक़्त को छोड़ ये पानी है गुज़र जाएगा
सच कोई फ़न तो नहीं है जो सिखाया जाए
झूट से काम ले सच बोलना आ जाएगा
दो पहर हाल-ए-ग़नीमत हैं अकेले-पन से
साथ मत छोड़ कि आँखों में बिखर जाएगा
बहर-ए-ज़ुल्मात पसीना है मिरी आँखों का
ज़िद न कर काम ये आँसू का भी कर जाएगा
इन लहू-रंग फ़ज़ाओं पे न जा बात समझ
घर के आसेब से बच वक़्त बदल जाएगा
मेरी ग़ज़लें हैं मोहब्बत के सहीफ़े 'अंजुम'
पढ़ने वालों को तिलावत का मज़ा आएगा
ग़ज़ल
सुन कहा मान न मानेगा तो पछताएगा
अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी