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सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है | शाही शायरी
sukun-parwar hai jazbaati nahin hai

ग़ज़ल

सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है

इबरत बहराईची

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सुकूँ-परवर है जज़्बाती नहीं है
मिरा हमदम ख़ुराफ़ाती नहीं है

जो करता था चराग़ाँ सब के घर में
उसी के घर दिया-बाती नहीं है

मिरा महबूब है महबूब-ए-कामिल
मिरा महबूब जज़्बाती नहीं है

तअल्लुक़ रख के भी है बे-तअल्लुक़
समझ में बात ये आती नहीं है

जिसे रास आ गई उज़्लत-नशीनी
तबीअ'त उस की घबराती नहीं है

पशेमानी है वो तेरे जुनूँ की
मिरे घर आ के जो जाती नहीं है

उसी ग़म में सदा रहता हूँ हमदम
तिरा जज़्बा इनायाती नहीं है

मुझे 'इबरत' ख़ुशी इस बात की है
तिरा मस्लक रिवायाती नहीं है