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सुख़न मुश्ताक़ है आलम हमारा | शाही शायरी
suKHan mushtaq hai aalam hamara

ग़ज़ल

सुख़न मुश्ताक़ है आलम हमारा

मीर तक़ी मीर

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सुख़न मुश्ताक़ है आलम हमारा
बहुत आलम करेगा ग़म हमारा

पढ़ेंगे शेर रो रो लोग बैठे
रहेगा देर तक मातम हमारा

नहीं है मर्जा-ए-आदम अगर ख़ाक
किधर जाता है क़द्द-ए-ख़म हमारा

ज़मीन ओ आसमाँ ज़ेर-ओ-ज़बर है
नहीं कम हश्र से ऊधम हमारा

किसू के बाल दरहम देखते 'मीर'
हुआ है काम-ए-दिल बरहम हमारा