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सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते | शाही शायरी
sukhane baal hi koThe pe aa gae hote

ग़ज़ल

सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते

मोहम्मद अल्वी

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सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते
इसी बहाने ज़रा मुँह दिखा गए होते

तुम्हें भी वक़्त की रफ़्तार का पता चलता
निकल के घर से गली तक तो आ गए होते

गला भिगो के कहीं और सदा लगा लेता
ज़रा फ़क़ीर को पानी पिला गए होते

अरे ये ठीक हुआ होंट सी लिए हम ने
वगर्ना लोग तुझे कब का पा गए होते

भला हो चाँद का आते ही नूर पहुँचाया
सितारे होते तो आँखें चुरा गए होते

जवान जिस्मों को ठंडा न कर सके लेकिन
हवा के झोंके दिया तो बुझा गए होते