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सुब्ह को निकला था गरचे कर्र-ओ-फ़र्र से आफ़्ताब | शाही शायरी
subh ko nikla tha garche karr-o-farr se aaftab

ग़ज़ल

सुब्ह को निकला था गरचे कर्र-ओ-फ़र्र से आफ़्ताब

महाराज सर किशन परशाद शाद

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सुब्ह को निकला था गरचे कर्र-ओ-फ़र्र से आफ़्ताब
मुँह फिराया हो ख़जिल उस इश्वा-गर से आफ़्ताब

आसमाँ पर गर गिरे बर्क़-ए-निगाह-ए-तुंद-बार
अब्र में रह जाए छुप कर उस के डर से आफ़्ताब

गर नक़ाब अपनी उलट दे वो रुख़-ए-ताबिंदा से
गिर पड़े बेताब हो कर चर्ख़ पर से आफ़्ताब

दिल में जब से देखता है वो तिरी तस्वीर को
नूर बरसाता है अपनी चश्म-ए-तर से आफ़्ताब

हैबत-ए-शाह-ए-दकन से 'शाद' ये शोहरा है आज
काँपता निकला करे जेब-ए-सहर से आफ़्ताब