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सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है | शाही शायरी
subh kaisi hai wahan sham ki rangat kya hai

ग़ज़ल

सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है

अज़हर अदीब

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सुब्ह कैसी है वहाँ शाम की रंगत क्या है
अब तिरे शहर में हालात की सूरत क्या है

एक आज़ार धड़कता है यहाँ सीने में
अब तुझे कैसे बताएँ कि मोहब्बत क्या है

हुक्म देता है तो आवाज़ लरज़ जाती है
जाने अब के मिरे सालार की निय्यत क्या है

ये जो मैं पेड़ उगाने में लगा रहता हूँ
मैं समझता हूँ मिरी पहली ज़रूरत क्या है

मेरा तो ये है कि मैं बिखरा हुआ हूँ अब तक
तू बता मुझ से बिछड़ कर तिरी हालत क्या है

आँख में उड़ती हुई धूल बता देती है
दिल में आए हुए भौंचाल की शिद्दत क्या है

लम्हा लम्हा मैं खिंचा जाता हूँ उस की जानिब
जाने उस मिट्टी से 'अज़हर' मिरी निस्बत क्या है