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सुब्ह का झरना हमेशा हँसने वाली औरतें | शाही शायरी
subh ka jharna hamesha hansne wali aurten

ग़ज़ल

सुब्ह का झरना हमेशा हँसने वाली औरतें

बशीर बद्र

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सुब्ह का झरना हमेशा हँसने वाली औरतें
झुटपुटे की नद्दियाँ ख़ामोश गहरी औरतें

मो'तदिल कर देती हैं ये सर्द मौसम का मिज़ाज
बर्फ़ के टीलों पे चढ़ती धूप जैसी औरतें

सब्ज़ नारंजी सुनहरी खट्टी मीठी लड़कियाँ
भारी जिस्मों वाली टपके आम जैसी औरतें

सड़कों बाज़ारों मकानों दफ़्तरों में रात दिन
लाल नीली सब्ज़ नीली जलती बुझती औरतें

शहर में इक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं इस में सातों रंग वाली औरतें

सैकड़ों ऐसी दुकानें हैं जहाँ मिल जाएँगी
धात की पत्थर की शीशे की रबड़ की औरतें

मुंजमिद हैं बर्फ़ में कुछ आग के पैकर अभी
मक़बरों की चादरें हैं फूल जैसी औरतें

उन के अंदर पक रहा है वक़्त का आतिश-फ़िशाँ
जिन पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें

आँसुओं की तरह तारे गिर रहे हैं अर्श से
रो रही हैं आसमानों की अकेली औरतें

ग़ौर से सूरज निकलते वक़्त देखो आसमाँ
चूमती हैं किस का माथा उजली लम्बी औरतें

सब्ज़ सोने के पहाड़ों पर क़तार-अंदर-क़तार
सर से सर जोड़े खड़ी हैं लम्बी सीधी औरतें

वाक़ई दोनों बहुत मज़लूम हैं नक़्क़ाद और
माँ कहे जाने की हसरत में सुलगती औरतें