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सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया | शाही शायरी
subh-e-nushur kyun meri aankhon mein nur aa gaya

ग़ज़ल

सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया

रसूल साक़ी

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सुब्ह-नुशूर क्यूँ मिरी आँखों में नूर आ गया
तेरी नक़ाब उलट गई या कोह-ए-तूर आ गया

वो भी अजीब वक़्त था मुझ पे हयात तंग थी
लेकिन उसी अज़ाब में जीना ज़रूर आ गया

तुम ने तो कोह-ए-क़ाफ़ में उम्र-ए-अज़ीज़ काट दी
लेकिन वो तिफ़्ल क्या करे जिस को शुऊ'र आ गया

इस अर्सा-ए-हिजाब की आख़िर को हद भी है कहीं
तेरी तलाश में कोई दुनिया से दूर आ गया

दुनिया को देख देख के अपनी वज़्अ' बदल गई
वर्ना वो नूर मैं ही था जो सर-ए-तूर आ गया

ज़ाहिद उसे बुरा न कह माना कि रंग सुर्ख़ है
आँखों से मय छलक गई दिल को सुरूर आ गया