सुब्ह-ए-फ़िराक़ अल-अमाँ वस्ल की शाम अल-अमाँ
अजीब है बिसात-ए-इश्क़ अजब निज़ाम अल-अमाँ
थे कभी जो सुर्ख़-रू वो तो हम नहीं रहे
तुम तो हो चुनीं-चुनाँ तुम्हारा नाम अल-अमाँ
गुज़र गई ये ज़िंदगी क़दम क़दम घसीट के
मौत भी आ रही है क्या गाम-ब-गाम अल-अमाँ
फिर रहा था जा-ब-जा फ़क़ीर रिज़्क़ के लिए
आख़िर उसे ग़िज़ा मिली वो भी हराम अल-अमाँ
सारी तलाश है अबस सारी तलब है राएगाँ
कार-ए-फ़ुज़ूल इश्क़ में सब कुछ तमाम अल-अमाँ
हर्फ़-ए-कलाम से परे हर्फ-ए-सुकूत का जहाँ
कोई नहीं पहुँच सका नक़्श-ए-दवाम अल-अमाँ
खुलता नहीं 'हमेश' पर उक़्दा-ए-फ़रेब क्यूँ
किस ने बिछाए हैं यहाँ दाना-ओ-दाम अल-अमाँ
ग़ज़ल
सुब्ह-ए-फ़िराक़ अल-अमाँ वस्ल की शाम अल-अमाँ
अहमद हमेश