सोज़-ए-दिल भी नहीं सुकूँ भी है
ज़िंदगानी वबाल यूँ भी है
तिरी ख़्वाहिश और इस क़दर ख़्वाहिश
वज्ह-ए-हासिल सही जुनूँ भी है
ख़ुश भी है इल्तिफ़ात-ए-दोस्त से दिल
ग़ैरत-ए-इश्क़ सर-निगूँ भी है
जल के बुझ भी गई 'ज़िया' अक्सर
आग सीने में जूँ की तूँ भी है

ग़ज़ल
सोज़-ए-दिल भी नहीं सुकूँ भी है
ज़िया जालंधरी