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सोज़-ए-दरूँ हमारा ज़ाहिर न हो किसी पर | शाही शायरी
soz-e-darun hamara zahir na ho kisi par

ग़ज़ल

सोज़-ए-दरूँ हमारा ज़ाहिर न हो किसी पर

शाग़िल क़ादरी

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सोज़-ए-दरूँ हमारा ज़ाहिर न हो किसी पर
इक दाग़ लग न जाए दामान-ए-आशिक़ी पर

लाज़िम हज़र है ऐ दिल आह-ओ-फ़ुग़ाँ से दाइम
आता है हर्फ़ उस से दावा-ए-दोस्ती पर

राह-ए-वफ़ा में कोई देता है साथ किस का
ग़म क्यूँ मनाएँ नाहक़ हम अपनी बेकसी पर

नाज़ाँ जमाल-ए-पर्दा ग़र्रा अदा पे उन को
मुझ को भी फ़ख़्र लेकिन है जज़्ब-ए-आशिक़ी पर

मम्नून 'क़ादरी' हूँ उस नुक्ता-चीं का दिल से
तन्क़ीद जिस की सैक़ल है मेरी शाइ'री पर