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सोते सोते अचानक गली डर गई | शाही शायरी
sote sote achanak gali Dar gai

ग़ज़ल

सोते सोते अचानक गली डर गई

मोहम्मद अल्वी

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सोते सोते अचानक गली डर गई
दोपहर चील की चीख़ से भर गई

एक झोंका रुका आ के दालान में
इक महक दिल को बेचैन सा कर गई

वो घने जंगलों में कहीं खो गया
याद उस की समुंदर समुंदर गई

आज की सुब्ह थी किस क़दर मेहरबाँ
फूल ही फूल गुल-दान में भर गई

घर में 'अल्वी' नया रंग-ओ-रोग़न हुआ
शक्ल थी एक दीवार पे मर गई