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सोने के लब चाँदी के चेहरों में जड़े हैं | शाही शायरी
sone ke lab chandi ke chehron mein jaDe hain

ग़ज़ल

सोने के लब चाँदी के चेहरों में जड़े हैं

नूर तक़ी नूर

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सोने के लब चाँदी के चेहरों में जड़े हैं
उन से बात न करना तुम ये लोग बड़े हैं

तूफ़ानों में चलना तो मुश्किल है लेकिन
ये हिम्मत भी क्या कम है कुछ लोग खड़े हैं

ये अब क्या ढूँड रहे हो इन ख़ाली आँखों में
ये गोशे तो बरसों से वीरान पड़े हैं

कैसी कैसी अनहोनी बातें होती हैं
कैसे कैसे दुनिया ने इल्ज़ाम गढ़े हैं

मेज़ किताबें कमरा ख़त तस्वीर रिसाले
हम क्या चुप हैं सब के सब ख़ामोश पड़े हैं

'नूर' उन्हें भी इज़्न मिले कुछ आज़ादी का
जो सदियों से जिस्मों के जंगल में पड़े हैं