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सोफ़ार-ऐ-तसव्वुर है सितारों का हदफ़ है | शाही शायरी
sofar-e-tasawwur hai sitaron ka hadaf hai

ग़ज़ल

सोफ़ार-ऐ-तसव्वुर है सितारों का हदफ़ है

इज़हार असर

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सोफ़ार-ऐ-तसव्वुर है सितारों का हदफ़ है
है फ़ातेह अफ़्लाक ये इंसाँ का शरफ़ है

इक लम्हा-ए-तख़्लीक़ की आहट है कहीं पर
मोती कोई निकलेगा अभी बंद सदफ़ है

तू भी तो हटा जिस्म के सूरज से अंधेरे
ये महकी हुई रात भी महताब-ब-कफ़ है

जिस लफ़्ज़ पे सर अपने कटाए शोहदा ने
तारीख़-ए-सियासत से वही लफ़्ज़ हज़्फ़ है

हर सम्त फ़रिश्ते हैं कि तर्शे हुए पत्थर
इस भीड़ में इंसाँ के लिए भी कोई सफ़ है