सोए पानी के तले डूबे हुए पैकर लिखें
आईना-ख़ाने में गुज़री साअतों के घर लिखें
आँख की पुतली में ठहरी ख़्वाहिशों के रंग से
जो न हो महसूस ऐसी बात चेहरे पर लिखें
दस्तकें देती है कच्चे जिस्म पर मौज-ए-सबा
वक़्त के आब-ए-रवाँ पे अक्स के पैकर लिखें
भीगे होंटों पर हवा के गर्म बोसे सब्त हैं
सर्द कमरे में लहू के दौड़ते लश्कर लिखें
ख़्वाहिशों के चाँद का लम्बा सफ़र तय हो गया
अब अकेले-पन के मैदाँ में घिरे मंदर लिखें
मुट्ठियाँ खोलीं पसीने के सिवा कुछ भी नहीं
उम्र से बढ़ कर पुरानी बात फिर क्यूँ-कर लिखें
जिस्म के क़िस्से तो अब 'अहमद' पुराने हो गए
अब कोई ताज़ा रिवायत दिल के पत्थर पर लिखें
ग़ज़ल
सोए पानी के तले डूबे हुए पैकर लिखें
सिब्त अहमद