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सोचती आँखें मुझे दीं किस ने आख़िर कौन था | शाही शायरी
sochti aankhen mujhe din kis ne aaKHir kaun tha

ग़ज़ल

सोचती आँखें मुझे दीं किस ने आख़िर कौन था

नूर मोहम्मद यास

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सोचती आँखें मुझे दीं किस ने आख़िर कौन था
मैं ने तो देखा नहीं मेरा मुसव्विर कौन था

सब अगर महसूर थे ख़ुद में तो किस का था हिसार
सब अगर मजबूर थे ख़ुद से तो जाबिर कौन था

मेरी आँखों के अलावा किस ने देखा था मुझे
अपने बातिन से ज़ियादा मुझ पे ज़ाहिर कौन था

हो न हो तू ने ही काटी है ज़ुबाँ-ए-जहल 'यास'
दूसरा तेरे सिवा इस फ़न का माहिर कौन था