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सोचों के हाथों का गहना टूट गया | शाही शायरी
sochon ke hathon ka gahna TuT gaya

ग़ज़ल

सोचों के हाथों का गहना टूट गया

ख़लिश बड़ौदवी

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सोचों के हाथों का गहना टूट गया
लफ़्ज़ों से लफ़्ज़ों का रिश्ता टूट गया

वक़्त ने नींदें छीन लीं मेरी आँखों से
तू था जिस की जान वो सपना टूट गया

उस ने बस इक फूल चमन में तोड़ा था
मेरे अंदर जाने क्या क्या टूट गया

अब के गाँव में जाना चाहा था लेकिन
ऐसी हुई बरसात कि रस्ता टूट गया

वक़्त से लोहा लेना आसाँ काम न था
इस कोशिश में हाथ हमारा टूट गया

हम ख़ुद उस से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर बैठे
झूटा सच्चा हर इक वा'दा टूट गया

क्या बतलाऊँ कौन सा था बाज़ार 'ख़लिश'
जिस में मेरे दिल का झुमका टूट गया