EN اردو
सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर | शाही शायरी
soch mein Duba hua hun aks apna dekh kar

ग़ज़ल

सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर

साक़ी फ़ारुक़ी

;

सोच में डूबा हुआ हूँ अक्स अपना देख कर
जी लरज़ उट्ठा तिरी आँखों में सहरा देख कर

प्यास बढ़ती जा रही है बहता दरिया देख कर
भागती जाती हैं लहरें ये तमाशा देख कर

एक दिन आँखों में बढ़ जाएगी वीरानी बहुत
एक दिन रातें डराएँगी अकेला देख कर

एक दुनिया एक साए पर तरस खाती हुई
लौट कर आया हूँ मैं अपना तमाशा देख कर

उम्र भर काँटों में दामन कौन उलझाता फिरे
अपने वीराने में आ बैठा हूँ दुनिया देख कर