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सोच दी है जवाब भी दे | शाही शायरी
soch di hai jawab bhi de

ग़ज़ल

सोच दी है जवाब भी दे

अाज़म ख़ुर्शीद

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सोच दी है जवाब भी दे
कुछ तो यारब हिसाब भी दे

क़तरा क़तरा शराब बरसे
थोड़ा थोड़ा अज़ाब भी दे

चाहतों के तो सिलसिले हैं
मौसमों का शबाब भी दे

इक किनारा है दूसरा भी
पानियों में हबाब भी दे

जिस के काँटे भी मुझ को चूमें
कोई ऐसा गुलाब भी दे

धूप हँसती है वाहिमे भी
तीरगी दे सराब भी दे

आग बस्ती का रहने वाला
रंग-ए-गर्दिश-ए-सहाब भी दे

लम्हे-भर में हज़ार ख़्वाहिश
बंदा-पर्वर जवाब भी दे

मोहब्बतों का अज़ाब झेलूँ
नफ़रतों का सवाब भी दे

तेरा मेरा हिसाब कैसा
ख़्वाब हूँ और ख़्वाब भी दे

कुन तो मेरा वजूद है हूँ
लफ़्ज़ उतरें ख़िताब भी दे

मैं पयम्बर नहीं हूँ तौबा
आँख दी है किताब भी दे

मैं तो अपने तवाफ़ में हूँ
राह-ए-ख़ाना-ख़राब भी दे