EN اردو
सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था | शाही शायरी
soch bhi us din ko jab tu ne mujhe socha na tha

ग़ज़ल

सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था

फ़ारूक़ मुज़्तर

;

सोच भी उस दिन को जब तू ने मुझे सोचा न था
कोई दरिया दश्त के अतराफ़ में बहता न था

उस को कब फ़ुर्सत थी जो चेहरों को पढ़ता ग़ौर से
वर्ना सतह-ए-आइना का हर वरक़ सादा न था

जाने क्यूँ अब रात दिन घर में पड़ा रहता है वो
पहले यूँ ख़ुद में कभी सिमटा हुआ रहता न था

ख़ुशबुओं रंगों को पी लेती है आकर ज़र्द-शाम
पेड़ है अंदेशा-ए-अंजाम तो सूखा न था

शाह-राहों से गुरेज़ाँ है मगर कुछ सोच कर
आदतन पहले तो वो पगडंडियाँ चलता न था