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सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की | शाही शायरी
so usko chhoD diya usne jab wafa nahin ki

ग़ज़ल

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

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सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की
पलट के हम ने कोई उस से इल्तिजा नहीं की

फिर उस के ब'अद कहीं तब्अ आश्ना नहीं की
हमारे दिल में किसी और ने भी जा नहीं की

जिगर-फ़िगार रहे क़ैस से सिवा लेकिन
गए न दश्त को और चाक भी क़बा नहीं की

ख़ुदा को हाज़िर ओ नाज़िर समझ के ये कह दे
कि हम ने तुझ से मोहब्बत में इंतिहा नहीं की

मगर तू फिर भी गिला-मंद है तो होता रहे
कि हम ने तुझ से वफ़ा की नहीं तो जा नहीं की

ज़रूरतें तो कई तरह की रहीं दरपेश
अमीर-ए-शहर के दर पर कभी सदा नहीं की

ख़फ़ा किया है ख़ुदा को तो बारहा लेकिन
ख़ुदा का शुक्र ख़फ़ा ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा नहीं की

हमारा ज़ोम-ए-सुख़न रह गया धरे का धरा
कि उस के सामने इक बात भी बना नहीं की

रही है दिल ही में रूदाद अपने दुख की 'सुकून'
कहीं कहा नहीं की और कहीं सुना नहीं की