EN اردو
सो जाऊँ पर कैसे सोया जा सकता है | शाही शायरी
so jaun par kaise soya ja sakta hai

ग़ज़ल

सो जाऊँ पर कैसे सोया जा सकता है

वसीम ताशिफ़

;

सो जाऊँ पर कैसे सोया जा सकता है
उस को बंद आँखों से देखा जा सकता है

पानी पर तस्वीर बनाई जा सकती है
उस का नाम हवा पर लिक्खा जा सकता है

अब मैं जितनी चाहूँ ख़ाक उड़ा सकता हूँ
जितना चाहूँ उतना रोया जा सकता है

सादा-दिल देहाती था सो मान गया मैं
हालाँकि उस घर तक रिक्शा जा सकता है

क्या हम पहले जैसे भाई बन सकते हैं
इक चूल्हे पर बैठ के खाया जा सकता है