सितम कोई नया ईजाद करना
तो मुझ को भी मिरी जाँ याद करना
क़यामत है दिल-ए-नालाँ क़यामत
तिरा रह रह के ये फ़रियाद करना
चलो अब लुत्फ़ ही को आज़माओ
तुम्हें आता नहीं बेदाद करना
असीर-ए-ज़ुल्फ़ है 'महरूम' उन का
जिन्हें आता नहीं आज़ाद करना

ग़ज़ल
सितम कोई नया ईजाद करना
तिलोकचंद महरूम