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सितम के बा'द करम की अदा भी ख़ूब रही | शाही शायरी
sitam ke baad karam ki ada bhi KHub rahi

ग़ज़ल

सितम के बा'द करम की अदा भी ख़ूब रही

क़तील शिफ़ाई

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सितम के बा'द करम की अदा भी ख़ूब रही
जफ़ा तो ख़ैर जफ़ा थी वफ़ा भी ख़ूब रही

ब-फ़ैज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ उन्हें भी प्यार आया
ब-पास-ए-मस्लहत उन की रज़ा भी ख़ूब रही

ब-सद-ख़ुलूस क़नाअ'त की दाद मिलती है
गदा-नवाज़ी-ए-अहल-ए-सख़ा भी ख़ूब रही

लगी है मोहर मुक़द्दर की दाने दाने पर
ये ख़ुश-मज़ाक़ी-ए-शान-ए-ख़ुदा भी ख़ूब रही

कहीं शिकम के तक़ाज़े नज़र नहीं आते
चराग़-ए-दैर-ओ-हरम की ज़िया भी ख़ूब रही

हमारे हाथ से आती है बू-ए-पैराहन
हमारे हुस्न-ए-तलब की अदा भी ख़ूब रही