सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें
तुम्हारे जब्र को अपना ही इख़्तियार कहें
सुकूँ वही है जिसे चारा-गर सुकूँ कह दें
कहाँ ये इज़्न कि कुछ तेरे बे-क़रार कहें
छुपाएँ दाग़-ए-जिगर फूल जितना मुमकिन हो
कहीं न अहल-ए-नज़र उन को दिल-फ़िगार कहें
फ़ज़ा है उन की चमन उन के आशियाँ उन के
ख़िज़ाँ के ज़ख़्म को जो ग़ुंचा-ए-बहार कहें
पिए हैं अश्क हज़ारों तो लब पे आई है
वो इक हँसी कि जिसे फ़र्ज़-ए-नागवार कहें
अँधेरी शब में जलेंगे चराग़ बन बन के
वो नक़्श-ए-पा कि जिन्हें राह का ग़ुबार कहें
समझ सकेगा वहाँ कौन राज़-ए-मय-ख़ाना
'नसीम' तिश्ना-लबी को जहाँ ख़ुमार कहें
ग़ज़ल
सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें
वहीदा नसीम