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सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें | शाही शायरी
sitam hai dil ke dhaDakne ko bhi qarar kahen

ग़ज़ल

सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें

वहीदा नसीम

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सितम है दिल के धड़कने को भी क़रार कहें
तुम्हारे जब्र को अपना ही इख़्तियार कहें

सुकूँ वही है जिसे चारा-गर सुकूँ कह दें
कहाँ ये इज़्न कि कुछ तेरे बे-क़रार कहें

छुपाएँ दाग़-ए-जिगर फूल जितना मुमकिन हो
कहीं न अहल-ए-नज़र उन को दिल-फ़िगार कहें

फ़ज़ा है उन की चमन उन के आशियाँ उन के
ख़िज़ाँ के ज़ख़्म को जो ग़ुंचा-ए-बहार कहें

पिए हैं अश्क हज़ारों तो लब पे आई है
वो इक हँसी कि जिसे फ़र्ज़-ए-नागवार कहें

अँधेरी शब में जलेंगे चराग़ बन बन के
वो नक़्श-ए-पा कि जिन्हें राह का ग़ुबार कहें

समझ सकेगा वहाँ कौन राज़-ए-मय-ख़ाना
'नसीम' तिश्ना-लबी को जहाँ ख़ुमार कहें