सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना
तुम मिरे बा'द भी हसीं रहना
पेड़ की तरह जिस जगह फूटा
उम्र-भर है मुझे वहीं रहना
मश्ग़ला है शरीफ़ लोगों का
सूरत-ए-मार-ए-आस्तीं रहना
दिली उजड़ी उदास बस्ती में
चाहते थे कई मकीं रहना
मर न जाए तुम्हारी फुलवारी
क़ार्या-ए-ज़ख्म के क़रीं रहना
मुस्कुराता हूँ आदतन 'असलम'
कौन समझे मिरा ग़मीं रहना
ग़ज़ल
सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना
असलम कोलसरी