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सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना | शाही शायरी
sirf mere liye nahin rahna

ग़ज़ल

सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना

असलम कोलसरी

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सिर्फ़ मेरे लिए नहीं रहना
तुम मिरे बा'द भी हसीं रहना

पेड़ की तरह जिस जगह फूटा
उम्र-भर है मुझे वहीं रहना

मश्ग़ला है शरीफ़ लोगों का
सूरत-ए-मार-ए-आस्तीं रहना

दिली उजड़ी उदास बस्ती में
चाहते थे कई मकीं रहना

मर न जाए तुम्हारी फुलवारी
क़ार्या-ए-ज़ख्म के क़रीं रहना

मुस्कुराता हूँ आदतन 'असलम'
कौन समझे मिरा ग़मीं रहना