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सिर्फ़ इतने जुर्म पर हंगामा होता जाए है | शाही शायरी
sirf itne jurm par hangama hota jae hai

ग़ज़ल

सिर्फ़ इतने जुर्म पर हंगामा होता जाए है

कैफ़ भोपाली

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सिर्फ़ इतने जुर्म पर हंगामा होता जाए है
तेरा दीवाना तिरी गलियों में देखा जाए है

आप किस किस को भला सूली चढ़ाते जाएँगे
अब तो सारा शहर ही मंसूर बनता जाए है

दिलबरों के भेस में फिरते हैं चोरों के गिरोह
जागते रहियो कि इन रातों में लूटा जाए है

तेरा मय-ख़ाना है या ख़ैरात-ख़ाना साक़िया
इस तरह मिलता है बादा जैसे बख़्शा जाए है

मय-कशो आगे बढ़ो तिश्ना-लबो आगे बढ़ो
अपना हक़ माँगा नहीं जाता है छीना जाए है

मौत आई और तसव्वुर आप का रुख़्सत हुआ
जैसे मंज़िल तक कोई रह-रौ को पहुँचा जाए है