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सिर्फ़ इतना क़ुसूर-वार हूँ मैं | शाही शायरी
sirf itna qusur-war hun main

ग़ज़ल

सिर्फ़ इतना क़ुसूर-वार हूँ मैं

मज़हर अब्बास

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सिर्फ़ इतना क़ुसूर-वार हूँ मैं
चाहता तुझ को बे-शुमार हूँ मैं

जो मोहब्बत थी वो अदा कर दी
तेरी नफ़रत का क़र्ज़-दार हूँ मैं

कुछ ख़ता है मिरी न कोई गुनाह
तंग-नज़री का बस शिकार हूँ मैं

हादसे मेरा क्या बिगाड़ेंगे
माँ की आँखों का इंतिज़ार हूँ मैं

मंज़िलें रूह तय करेगी ख़ुद
कश्ती-ए-जिस्म पर सवार हूँ मैं