सिलसिला लफ़्ज़ों की सौग़ात का भी टूट गया
राब्ता ख़त से मुलाक़ात का भी टूट गया
माँ की आग़ोश में उल्फ़त की रवानी पा कर
बाँध ठहरे हुए जज़्बात का भी टूट गया
एहतिराम अपने बुज़ुर्गों का अदब छोटों का
अब चलन ऐसी रिवायात का भी टूट गया
रात के माथे पे सूरज ने सहर लिख दी है
आसरा उस से मुलाक़ात का भी टूट गया
आ गया कैसे वो अब अपनी अना से बाहर
क्या हिसार आज मिरी ज़ात का भी टूट गया
आज अख़बार की ख़बरें भी हैं मश्कूक 'फ़राज़'
आइना सूरत-ए-हालात का भी टूट गया
ग़ज़ल
सिलसिला लफ़्ज़ों की सौग़ात का भी टूट गया
मुजाहिद फ़राज़