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सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना | शाही शायरी
sikha diya hai zamane ne be-basar rahna

ग़ज़ल

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

वज़ीर आग़ा

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सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना
ख़बर की आँच में जल कर भी बे-ख़बर रहना

सहर की ओस से कहना कि एक पल तो रुके
कि ना-पसंद है हम को भी ख़ाक पर रहना

तमाम उम्र ही गुज़री है दस्तकें सुनते
हमें तो रास न आया ख़ुद अपने घर रहना

वो ख़ुश-कलाम है ऐसा कि उस के पास हमें
तवील रहना भी लगता है मुख़्तसर रहना

सफ़र अज़ीज़ हवा को मगर अज़ीज़ हमें
मिसाल-ए-निकहत-ए-गुल उस का हम-सफ़र रहना

शजर पे फूल तो आते रहे बहुत लेकिन
समझ में आ न सका उस का बे-समर रहना

अजीब तर्ज़-ए-तकल्लुम है उस की आँखों का
ख़मोश रह के भी लफ़्ज़ों की धार पर रहना

वरक़ वरक़ न सही उम्र-ए-राएगाँ मेरी
हवा के साथ मगर तुम न उम्र भर रहना

ज़रा सी ठेस लगी और घर को ओढ़ लिया
कहाँ गया वो तुम्हारा नगर नगर रहना