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सीनों में तपिश है कभी शोरिश है सरों में | शाही शायरी
sinon mein tapish hai kabhi shorish hai saron mein

ग़ज़ल

सीनों में तपिश है कभी शोरिश है सरों में

ख़ुर्शीद रिज़वी

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सीनों में तपिश है कभी शोरिश है सरों में
क्या चीज़ बसा दी गई मिट्टी के घरों में

चलता हूँ सदा साथ लिए अपनी फ़सीलें
पहचान सका कौन मुझे हम-सफ़रों में

उड़ना है तो तहज़ीब करो सोज़-ए-दरूँ की
ये वर्ना कहीं आग लगा दे न परों में

ग़ैरों में हुई आम तिरी दौलत-ए-दीदार
इक कोहल-ए-बसर था कि लुटा बे-बसरों में

दो-गाम पे तुम ख़ुद से बिछड़ जाते हो 'ख़ुर्शीद'
और लोग समझते हैं तुम्हें राहबरों में