EN اردو
सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन | शाही शायरी
sidha sachcha tumhein ai jaan-e-jahan jaane kaun

ग़ज़ल

सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन

नसीम भरतपूरी

;

सीधा सच्चा तुम्हें ऐ जान-ए-जहाँ जाने कौन
दिल को लगती न हो जो बात उसे माने कौन

था अभी तो दिल-ए-बेताब मिरे पहलू में
ले गया आँखों ही आँखों में ख़ुदा जाने कौन

फाड़ डालीं हैं गुलों ने जो क़बाएँ अपनी
बाग़ में आज गया था ये हवा खाने कौन

तुम न थे महफ़िल-ए-अग़्यार में शर्मिंदा न हो
मुँह छुपाए हुए बैठा था ख़ुदा जाने कौन

कूचा-ए-यार कभी तुझ से न छूटेगा 'नसीम'
गो ये क़स्में तिरी सच्ची हों मगर माने कौन