सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं
तपिश-ए-हिज्र में बरसों से गिरफ़्तार हूँ मैं
जा किसी और को जा धमकियाँ दे मारने की
जब से मैं पैदा हुआ तब से सर-ए-दार हूँ मैं
मेरा पैग़ाम भला तेग़ कहाँ रोकेगी
हाकिम-ए-वक़त को बतलाओ कलम-कार हूँ मैं
मैं ने तो रब को भी पूजा है और उस यार को भी
वाइज़ा तू ही बता किस का गुनहगार हूँ मैं
मंज़िल-ए-ज़ीस्त कहाँ मंज़िल-ए-मक़्सूद 'वक़ार'
इक सुरय्या-ए-मोहब्बत का तलबगार हूँ मैं
ग़ज़ल
सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं
वक़ार ख़ान