शुऊ'र-ए-तिश्नगी को आम कर दो
मैं कब कहता हूँ मेरा जाम भर दो
ज़र-ए-गुल बाँट दो अहल-ए-चमन में
हर एक सहरा हमारे नाम कर दो
न मैं यूसुफ़ न तुम कोई ज़ुलेख़ा
जहाँ चाहो मुझे नीलाम कर दो
वो मेरे सामने बैठे हुए हैं
हरीम-ए-हुस्न के नाकाम परदो
तुम इतना हुस्न आख़िर क्या करोगे
अरे कुछ तो ख़ुदा के नाम पर दो
ग़ज़ल
शुऊ'र-ए-तिश्नगी को आम कर दो
ताज भोपाली