शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की
कि रफ़्ता रफ़्ता कमी हो गई मोहब्बत की
ये कारगाह-ए-ज़ेहानत है इस में छोटे क्या
बड़े-बड़ों ने यहाँ पर बड़ी हिमाक़त की
जहाँ से इल्म का हम को ग़ुरूर होता है
वहीं से होती है बस इब्तिदा जहालत की
जो आदमी है तलाश-ए-सकूँ में सदियों से
उसी ने कर दी यहाँ इंतिहा भी वहशत की
पुराने लोगों को हर दौर में रहा शिकवा
नए दिमाग़ों ने हर अहद में बग़ावत की
दिखाई देता नहीं अपना मोम हो जाना
शिकायतें हैं हमें धूप से तमाज़त की
इसी लिए तो अँधेरे में आज बैठे हैं
कि हम ने अपने चराग़ों की कब हिफ़ाज़त की
ग़ज़ल
शुरू-ए-इश्क़ में लोगों ने इतनी शिद्दत की
अज़हर इनायती