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शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया | शाही शायरी
shumar-e-subha marghub-e-but-e-mushkil-pasand aaya

ग़ज़ल

शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया

मिर्ज़ा ग़ालिब

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शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
तमाशा-ए-ब-यक-कफ़ बुर्दन-ए-सद-दिल-पसंद आया

ब-फैज़-ए-बे-दिली नौमीदी-ए-जावेद आसाँ है
कुशायिश को हमारा उक़्दा-ए-मुश्किल-पसंद आया

हवा-ए-सैर-ए-गुल आईना-ए-बे-मेहरी-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-ब-खूं-ग़ल्तीदन-ए-बिस्मिल-पसंद आया

रवानी-हा-ए-मौज-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल से टपकता है
कि लुत्फ़-ए-बे-तहाशा-रफ़्तन-ए-क़ातिल-पसंद आया

'असद' हर जा सुख़न ने तरह-ए-बाग़-ए-ताज़ा डाली है
मुझे रंग-ए-बहार-ईजादि-ए-बे-दिल-पसंद आया