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शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी है | शाही शायरी
shorish-e-paiham bhi hai afsurdagi-e-dil bhi hai

ग़ज़ल

शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी है

राही शहाबी

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शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी है
ज़िंदगी बहता हुआ धारा भी है साहिल भी है

क़ैस की नज़रों से कोई देखने वाला तो हो
नज्द में लैला भी है जल्वे भी हैं महमिल भी है

क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन या क़िस्सा-ए-गेसू-ओ-क़द
कुछ तो छेड़ो वक़्त भी है रंग पर महफ़िल भी है

क्या करे पामाल-ए-ग़म इक याद-ए-माज़ी ही नहीं
हाल की भी तल्ख़ियाँ हैं फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल भी है

है इधर तूफ़ान दामन-गीर 'राही' क्या करूँ
मुंतज़िर मेरा उधर कोई लब-ए-साहिल भी है