शोर है हर तरफ़ सहाब सहाब
साक़िया साक़िया! शराब शराब
आब-ए-हैवाँ को मय से क्या निस्बत
पानी पानी है और शराब शराब
रिंद बख़्शे गए क़यामत में
शैख़ कहता रहा हिसाब हिसाब
इक वही मस्त बा-ख़बर निकला
जिस को कहते थे सब ख़राब ख़राब
मुझ से वजह-ए-गुनाह जब पूछी
सर झुका के कहा शबाब शबाब
जाम गिरने लगा तो बहका शैख़
थामना थामना किताब किताब
कब वो आता है सामने 'कशफ़ी'
जिस की हर इक अदा हिजाब हिजाब
ग़ज़ल
शोर है हर तरफ़ सहाब सहाब
कशफ़ी मुल्तानी