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शोर-ए-दरिया है कहानी मेरी | शाही शायरी
shor-e-dariya hai kahani meri

ग़ज़ल

शोर-ए-दरिया है कहानी मेरी

बाक़र नक़वी

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शोर-ए-दरिया है कहानी मेरी
पानी इस का है रवानी मेरी

कुछ ज़ियादा ही भली लगती है
मुझ को तस्वीर पुरानी मेरी

जब भी उभरा तिरा महताब-ए-ख़याल
खिल उठी रात की रानी मेरी

बढ़ के सीने से लगा लेता हूँ
जैसे हर ग़म हो निशानी मेरी

मेहरबाँ मुझ पे है इक शाख़-ए-गुलाब
कैसे महके न जवानी मेरी

फिर तिरे ज़िक्र की सरसों फूली
फिर ग़ज़ल हो गई धानी मेरी

कुछ तो आ'माल बुरे थे अपने
कुछ सितारों ने न मानी मेरी

लिखी जाएगी तिरे बर्फ़ के नाम
जो तमन्ना हुई पानी मेरी

तुम ने जो भी कहा मैं ने माना
तुम ने इक बात न मानी मेरी

मुख़्तसर बात थी जल्दी भी थी कुछ
इस पे कुछ ज़ूद-बयानी मेरी