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शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए | शाही शायरी
shohrat-e-fan bahut hui dad kamal de gae

ग़ज़ल

शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए

अताउर्रहमान जमील

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शोहरत-ए-फ़न बहुत हुई दाद कमाल दे गए
शे'र तो दोस्तो मगर साहिब-ए-हाल दे गए

नवर्द गुदाज़ जो भी था दिल की लगी का खेल था
शीशा-ए-ज़िंदगी को हम शम-ए-ख़याल दे गए

पुर्सिश-ए-ग़म के साथ थी शिरकत-ए-ग़म निगाह में
कितना मलाल ले गए कितना मलाल दे गए

सुब्ह-ए-चमन चमन नई शाम-ए-किरन किरन नई
हम तिरी काएनात को तेरा जमाल दे गए

हम से जुदा हुए तो क्या हम से जुदा न रह सके
आईना फ़िराक़ को अक्स-ए-विसाल दे गए