शो'ला-ख़ेज़-ओ-शो'ला-वर अब हर रह-ए-तदबीर है
ज़िंदगी गोया चिता की बोलती तस्वीर है
देख कर सेहन-ए-चमन को ये गुमाँ होने लगा
गोया खींचने को नई सी फिर कोई तस्वीर है
आशियाँ की ज़िंदगी से हो चला है दिल उचाट
फिर वही शौक़-ए-शहादत दिल का दामन-गीर है
आज अज़-राह-ए-करम भर दे लबालब साक़िया
ज़ौक़-ए-मय-नोशी मिरा फिर मौजिब-ए-ता'ज़ीर है
आ रही है कान में तौक़-ओ-सलासिल की सदा
नग़्मा-बर-अंदाज़ फिर से नग़्मा-ए-ज़ंजीर है
कश्तियाँ मौज-ए-हवादिस से न टकराएँ कहीं
नाख़ुदा का ख़्वाब जैसे तिश्ना-ए-ता'बीर है
'ज़ब्त' की हालत पे रोता है ज़माना देखिए
फ़स्ल-ए-गुल पर रू-ए-शबनम उस की ये तक़दीर है
ग़ज़ल
शो'ला-ख़ेज़-ओ-शो'ला-वर अब हर रह-ए-तदबीर है
शिव चरन दास गोयल ज़ब्त