शो'ला ही सही आग लगाने के लिए आ
फिर नूर के मंज़र को दिखाने के लिए आ
ये किस ने कहा है मिरी तक़दीर बना दे
आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिए आ
ऐ दोस्त मुझे गर्दिश-ए-हालात ने घेरा
तू ज़ुल्फ़ की कमली में छुपाने के लिए आ
दीवार है दुनिया इसे राहों से हटा दे
हर रस्म-ए-मोहब्बत को मिटाने के लिए आ
मतलब तिरी आमद से है दरमाँ से नहीं है
'हसरत' की क़सम दिल ही दुखाने के लिए आ
ग़ज़ल
शो'ला ही सही आग लगाने के लिए आ
हसरत जयपुरी